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"हमारी कोशिश है, आपकी कशिश बनी रहे"

March 20 2022

बाबूजी का पल्लू

"देखो माँ! (दादी) आज तक आपने जो बोला मैंने किया, जैसे बोला- वैसे किया, लेकिन ये मैं बिल्कुल भी नही होने दूँगा। अब ये सब मेरे बर्दाश्त के बाहर है। ये सब अब नही चलेगा, भाभीयों ने मान ली होगी। भैया कुछ नही बोले, वैसे भी 10 साल हो गए है, भैया की शादी को, अब वक्त बदल गया है। ये बदलाव तो अब लाना होगा और हम लोग पढ़े लिखे है, ये सब अभी भी चलाते रहोगे क्या? मेघा घूँघट नही निकलेगी बस मैंने कह दिया और…."

राज अपनी बात पूरी भी नही कर पाया था कि, बाहर बरामदे से दादा जी की आवाज आई, जो अभी-अभी घर मे घुसे ही थे और ये सब सुनते-सुनते बरामदे तक आ गए थे, सब लोग अंदर थे। राज की मम्मी, चाची, भाभीयाँ, भैया, बड़ी बहन प्रिया जो विवाहित थी, छोटी बहन रितु।सब सुन रहे थे, राज गुस्से में बोले जा रहा था।

दादा जी बोल रहे थे “भैया, नियम जैसे है वैसे रहेंगे, किसी को कोई भी समस्या हो घर छोड़ सकता है। तुमको लायक बना दिया है। इस परिवार में क्या बदलाव होने है, कब होने है, इसको तय करने का समय अभी तेरा आया नही है। हाँ, तू ज्यादा पढ़ लिख गया है?, तो बाहर वालों को पढ़ा ले, यहाँ रहने दे, यहाँ सबकी तालीम पूरी है।"

"लेकिन बाबूजी ये सब …रूढ़ियाँ …” राज ये सब बोलते हुए बाहर बरामदे की तरफ बढ़ा ।

बाबूजी छड़ी उठाकर बोले - “ जहाँ है, वही रुक जा और कुछ मुझे सुनना है नही। इस घर में इस विषय पर अब कभी कोई डिस्कशन नहीं होगा, और रास्ता तो मैं तुझे बता ही चुका हूँ, तुझे तो बस तय करना है, तेरा निर्णय स्वीकार किया जाएगा, या तो घर के नियम या पलायन तय करके आराम से बता देना।"

राज बिना कुछ बोले गुस्से से पाँव पटकता हुआ ऊपर चला गया, पीछे-पीछे नयी नवेली दुल्हन मेघा दौड़ी। राज ऊपर जाकर बड़बड़ा रहा था - "हिटलर है हिटलर, अपनी ही चलाएंगे, किसी की नही सुनते, बस अपनी ही करते है, दादागिरी कर रखी है, ये सब करना था, तो पढ़ाया क्यों था? हम लोगों को, रूढ़िवादी ही रहेंगे सब ।"

"अरे क्या हो गया है आपको, शादी के पहले तो बड़े बोलते थे। मेरे बाबूजी बड़े सिद्धान्त वाले है, दूध का दूध पानी का पानी करते है। दूर-दूर से उनसे लोग सलाह लेने आते है । परिवार जोड़े हुए है और अब हिटलर और क्या-क्या बोल रहे हो। " मेघा ने चुटकी ली। "हाँ, बोलता था और मानता भी हूँ, पर ये रवैया मैं सहन नही करूँगा।" राज भड़कते हुए बोला।

"अरे अरे आराम से, उनको लगता है घूँघट होना चाहिए, तो ठीक है, मुझे घूँघट में कोई आपत्ति नही है। मैंने अपने परिवार में भी देखा है, और घूँघट तो मुझे करना है, आपको नही। तो जब मुझे आपत्ति नही है, तो आप क्यों परेशान हो रहे हो, सब ठीक हो जाएगा। आप शांत हो जाओ।" "देखो मेघा उनका साथ मत दो, उनकी हिम्मत और बढ़ेगी ... " राज ने समझाने की कोशिश की। "श श श ....अब और डिस्कशन नही, और आप चिंता मत करो, आपसे घूँघट नही रखेंगे " ये बोलने के साथ ही एक प्यारी सी मुस्कान दी मेघा ने और राज ने मुस्कुराते हुए उसे गले से लगा लिया। तभी नीचे से बाबूजी की आवाज आई - "मेघा, बेटा एक चाय बना दे। ये पढ़े लिखे लोग है, समझाते ज्यादा है, समझने में थोड़ा टाइम लगेगा।" मेघा ने पल्लू खिंचा घूँघट निकाल कर चली आयी । राज उधर विचारों की उधेड़ बुन में लगा हुआ था । समय बीता शादी को 2 वर्ष बीत गए राज की पोस्टिंग बाहर थी, तो वो आता-जाता रहता था, कभी मेघा साथ चली जाती, कभी न जाती, पर राज और मेघा ये समझ चुके थे, जैसे देश वैसा भेष। वहाँ बाहर मेघा जैसा पहनती उस पर कभी बाबूजी कुछ बोले नहीं। इस बीच रितु का भी विवाह हुआ। बाबूजी के परिवार में सब बच्चे अच्छे से पढ़े लिखे थे। बाबूजी ने अपने पोते पोतियों को खूब पढ़ाया, बेटों को नही पढ़ा पाए क्योकि आर्थिक रूप से सबल नहीं थे, इसका मलाल उनको रहा। रितु चूंकि खुद अच्छी पढ़ी लिखी थी, उस समय 80 के दशक में जॉब भी जाती थी, बाबूजी ने कभी कोई आपत्ति नहीं की। तो अच्छा लड़का मिला, वो भी बिल्कुल रितु जैसा ही पढ़ा लिखा था। रितु का नया परिवार भी अच्छा था, पर चूँकि उनकी फ़ैमिली में सास-बहू के अलावा कोई और ना था, ससुर जी बैंक में रहे तो, जैसा कहा जाता है खुले विचारों के थे।तो कोई पर्दा रितु के घर मे नही था। यहाँ तक उस जमाने में रितु को सूट पहनने की भी आज़ादी थी। राज को ये देखकर बहुत अच्छा लगता था और दिल से सुकून मिलता था। सोचता था बाबू जी को अब लगता होगा, कि उन्होंने कैसे अपनी बहुओं को पर्दे में डाल रखा है।लेकिन कभी बाबूजी की बातों से ऐसा अहसास हुआ ही नही, कि उनको उसका कोई भी मलाल है।

एक दिन राज घर आया तो उसने देखा रितु रो रही है। राज को समझ नही आया क्या हुआ? पास ही कँवर सहाब खड़े थे। बाहर बाबूजी बरामदे में बैठे थे, उनको आभास था अंदर का, पर कुछ बोल नही रहे थे।राज के लिए ये आश्चर्यजनक था।मतलब रितु के आँसू आ जाये तो बाबूजी पूरी दुनिया पलट दे। राज को याद आया, एक बार जब रितु को कॉलेज ट्रिप पे जाना था तो, रितु की ज़िद पर चाचा ने रितु को थोड़ी ऊँची आवाज में डाँट लगा दी थी। तो चाचा जी को बाबूजी जी ने ऐसी लताड़ लगाई, कि चाचा ने एक दिन खाना नही खाया था और रितु को ट्रिप पर भेजा। सब बड़े अलग खड़े थे और बाबूजी रितु के साथ। पर आज वो बाहर बैठे थे। रितु रो रही थी । उनको कोई फर्क ही नही पड़ रहा था। राज को ये उनका स्वभाव समझ ही नही आता था। राज उनके प्रति एक मन बनाता था, लेकिन फिर वो उसे बदल देते थे।

राज ने पूछा “आखिर हुआ क्या है?” तो बड़ी भाभी धीमे से बोली "भैया जी, आज रितु दीदी को लेने कँवर सहाब आये थे। दीदी बाबू जी के पास ही लगी कुर्सी पर बैठी बाते कर रही थी। जब वो आये तो इन्होंने सूट की चुन्नी सर पर नही रखी और उनसे बाबूजी के सामने ही बोल गयी।"

राज भाभी की बात सुनकर तेज बोला ताकि बाबूजी सुने और वो सुन भी रहे थे । "तो इसमें क्या हुआ रितु के घर मे ऐसा ही चलन है । वहाँ ये जीन्स भी पहने तो कोई प्रॉब्लम नही, तो इसमें क्या गलत हो गया?"

भाभी अपनी उसी धीमी आवाज में बोली “बाबूजी को शायद ठीक नही लगा, तो बोले बेटा अपने घर मे जैसे रहना है रहो, लेकिन यहाँ इस घर मे सबके लिए सब समान है, आज तो कँवर सहाब से मेरे सामने बिना पल्लू लिए बोल ली है, ध्यान रहे आगे से गलती न हो। तो ये बात दीदी को लग गयी, इसलिए आँसू आ गए।” राज को लगा कि कैसे ही आदमी है दादा जी? अपनी बेटी को भी नही छोड़ा, लेकिन उस दिन घर की महिलाओं में जो कद बाबूजी का बढ़ा, कोई सोच ही नही सकता। यहाँ तक की मेघा के मुँह से निकल गया “इसे बोलते है घर का मुखिया।” अब ये या तो मेघा समझी या बाबूजी, राज और बाकी सब को कुछ पल्ले नही पड़ा ।

क्या होता है, पक्ष लिये बिना न्याय करना, परिवार चलाने के लिए परिवार के सभी लोगो के लिये समान नियम थे, दादा जी के। चाहे उनकी बेटी हो या बहू, बेटी अपने ससुराल कैसे रहती है? ये उसके परिवार के अनुसार है, पर यहाँ तो सब बराबर है।

डिस्कशन चल ही रहा था, कि बाबूजी ने आवाज लगाई “बेटा रितु, चाय पिलाएगी क्या? बहुत दिन हो गए तेरे हाथ की चाय पिये।” रितु रुंधे हुए गले से बोली "हाँ, बाबूजी लायी।"और रोती हुई रितु चाय बनाने के लिए उठ गयी। राज ये सोचता रहा। दादा जी इतना कॉन्फिडेंस लाते कहाँ से है? राज ने मेघा को देखा और मेघा की मुस्कान पर्दे में से झांकती हुई निकल गयी। राज समझ ही नहीं पता था वो, जो मेघा समझ पाती थी। उसे ये क्यों समझ नहीं आता था कि इतनी पढ़ाई करने के बाद वो कौनसे मूल्य थे परिवार के जो राज को नहीं, बल्कि कम पढ़ी लिखी मेघा समझती थी।

कुछ वर्ष बीते अब बाबूजी की हालत ठीक नही रहती थी, अलग-अलग बीमारियों ने पकड़ लिया था, स्वाभिमान इतना था, कि सब काम खुद ही करने का प्रयास करते थे, लेकिन अब तो हाथ भी बहुत हिलते थे। ठीक से कुछ पकड़ नही पाते थे, फिर भी पूरा प्रयास करते थे कि, सब खुद से ही करे, 95 वर्ष से ऊपर जा चुके थे अब बाबूजी। बाबूजी को कुछ भी चाहिए होता तो, बाबूजी आवाज लगाते - “रितु” पर रितु तो घर से कबकि विदा हो चुकी थी, परंतु वो आज भी यही आवाज लगते थे और कोई भी बहु आ जाती थी, उनकी आवाज सुनने पर । लेकिन जो बोलते, वो तो बहु सुन पाती, पर कुछ अपनी बात कह नही पाती, तो एक तरफ़ा वार्तालाप पूरा करने के लिए माँ (दादी) का सहारा लिया जाता। परंतु हर बार वो भी नही होती, माँ (दादी) कभी भागवत में, तो कभी मंदिर में रमती । एक दिन राज भी घर पर ही था। उस दिन जो राज ने सुना तो, उसे अपने कानो पर विश्वास न हुआ। मेघा और बाबू जी बात कर रहे थे। वो तेज़ी से बरामदे की तरफ भागा, तब मेघा बाबू जी को अपने हाथ से पानी पिला रही थी, पर घूँघट था। उसे लगा उसने गलत सुन लिया, लेकिन उससे रहा नही गया, उसी रात उसने मेघा से पूछ लिया। राज बोला "मेघा एक बात बताओ, क्या तुम बाबूजी से बात करती हो?" मेघा सरलता से बोली “हाँ, करती हूँ ।"

"और कब से चल रहा है ये, और तुमने ये सब क्यों किया, जब कोई बहु बात नही करती, तो तुमने ये क्यों किया, वो अभी मजबूर है, तो तुम मनमानी करने लगी।" राज का इतना कहना था कि मेघा ठहाका मार कर हँसी। फिर अपने को सम्भालते हुए मेघा बोली - “एक दिन घर पर कोई नही था, माँ कही गई हुई थी, तब बाबूजी ने चाय माँगी और उस दिन एक बात अलग थी, उस दिन उन्होंने “रितु” को नही,“मेघा” को आवाज दी थी। मैंने जब चाय दी तो हाथ हिलने के कारण छलक गयी और उनसे वो उनकी धोती पर ही गिर गयी। खेर, कुछ ज्यादा नही हुआ, पर तभी बाबूजी मुझसे बोले, देख मेघा तू भी मेरी रितु जैसी ही है, समय व परिस्थितियों के अनुसार व्यक्ति को नियमो में परिवर्तन कर देने चाहिए। तू तो मुझसे बात कर लिया कर। मैं तो सकते में थी। फिर बोले नीचे बैठ और फिर मेरे सर पर हाथ रखकर बोले। देख बेटा मेघा मुझे पता है तुम सबको लगेगा बुड्ढा मजबूर हुआ तो नियम तोड़ रहा है। देख बेटा, ये सच है कि मैंने कुछ नियम बनाये लोगों ने बहुत ज्ञान भी दिया, मुझे रूढ़िवादी भी बोला। मैंने अपने ही बच्चो के मन मे, मेरे प्रति एक कठोरता भी देखी है, ये सब जानते हुए भी में अडिग रहा। तुझे तो याद ही होगा, जब तू घर मे आयी थी और राज ने आतंक मचाया था, राज अपनी जगह सही था, मैं भी होता तो यही करता लेकिन बेटा एक मुखिया को घर को जोड़े रखने के लिए दूरगामी सोचना पड़ता है । इन पिछले 800 सालो में नारी की शिक्षा ग़ुलामी के कारण छूट गयी । हम आजाद हुए और वो शिक्षा फिर से लौटी, लेकिन क्या महिलाओं को पढ़ा देना ही काफी था ? क्या पुरुषों को ये बताना, किसी ने जरूरी नही समझा कि पुरुष प्रधान समाज का अर्थ - पुरुषों का महिलाओं पर आधिपत्य नही होता ।बल्कि त्याग में, प्रेम में ,संतुलन में, परिपक्वता में ,रक्षा में प्रधान रहने से होता है। हम शिक्षा पर जोर देते रहे, पर संस्कार कही छूट गए। शिक्षा ने हमें बस तर्क प्रधान ही बनाया । आज इस घर मे अगर पल्लू नही होता, इतने बड़ा परिवार कैसे निभा पता, तुम्हें क्या लगता है, सब स्वभाव में एक से है। जब कोई भाभी किसी देवर से मजाक कर दे तो अमूमन देवर को बर्दाश्त हो ही जाता है, पर अगर कोई बहु अपने ससुर से मजाक के बदले मजाक कर दे, तो क्या ससुर को बर्दाश्त हो जाएगा। आज तुम सब बहुएं मेरे लिए एक जैसी हो, मैं तुम्हें तुम्हारे कार्यो से ही जनता हूँ या तेरी माँ की बातों से, लेकिन सच मे मेरा तुम सब से कोई वार्तालाप नही होने से मैं तुम सबको समान और अच्छा ही मानता हूँ।तुम लोग आपस मे क्या करते हो, मैं नही जान पाता।यही मेरे परिवार के लिए अच्छा भी है, परंतु तुमको कभी ऐसा लगा कि तुम्हें जेल में डाल दिया हो या कही आने जाने पे मनाही हो।

मैंने (मेघा ने) बोल दिया, "नही बाबूजी, आप सबको बराबर रखते हो, सबकी ज़रूरतों का व सबका ध्यान रखते हो।"

फिर बाबूजी बोले "आज भी हम पुरुषों को परिपक्व नही बना पाए, कि वो अपनी पत्नी की अपने से ऊँची कमाई बर्दाश्त कर सके, तो बताओ ये कौनसी शिक्षा है, मैं तो पांचवी भी पास नही कर पाया, हो सकता है बहुत जगह गलत भी रहा हूँ, मैं बहुत बार कड़वा बोला, यहां तक मेरे बच्चों ने सहा, लेकिन मेरे लिए परिवार महत्वपूर्ण है, मैं बुरा बनूँगा, तभी तो न्याय होगा।ये सब बातें तुझे इसलिए बता रहा हूँ, क्योंकि तू सबसे छोटी है, पर समझदार है। तो मन हल्का कर लिया, बाकी तुम सब मेरे अपने हो, कोई पक्षपात नही कर पाया, पर कोई भी परफेक्ट नही होता तो गलतियाँ हुई होंगी। लेकिन तू अपने लड़कों को ये नारी सम्मान ज़रूर सिखाना, मुझे तो नही पता कि मैं सीखा पाया या नही, ताकि ये पर्दा हटे, क्योंकि मेरी जिंदगी तो तुम सबको जोड़े रखने में निकल गई और तेरी माँ बता रही थी, कि राज तो मुझे अब भी हिटलर भी बुलाता है और बाबूजी हँसने लगे। पहली बार मैंने बाबूजी की आंखों में आँसू देखे। राज! तब भी, मैं खड़ी सोच रही थी कितना गहन चिंतन, ऐसा चिंतन, किसी भी औपचारिक शिक्षा के बिना कैसे प्राप्त किया है ?इन्होंने ।मैं तो समझ ही नही पाई ये मर्यादा बस घर जोड़ने के लिए थी, जो उनको ठीक लगी वो सबको नहीं बदल सकते थे, ना पुरुष की सोच को, तो शायद तो उन्होंने पुराने नियम ही आगे बढ़ा लिए। अधूरी सी जवानी में गाँव से निकाला एक आदमी, जीवन भर संघर्षों को झेलता रहा, टूटते परिवारों में अपना परिवार बचाए रखा 25 लोगों का परिवार चार पीढ़िया साथ संजोए हुए चलता रहा, कई बार अपनो के बीच कटघरे में खड़ा किया गया, बुरा बना ।पर सच तो ये है, कि हमें आज तक इसका अहसास भी नही हुआ।" और ये सब बोलते बोले मेघा की आँख भर गयी और वो अब चुप हो गयी।

राज ये सब सुनने के बाद भी नही समझ पाया, कि क्या बोल दिए थे बाबूजी और क्या समझी मेघा । राज का ज्ञान तो अभी भी यही कहता था, कि बाबूजी अपनी गलतियाँ ढक रहे है। कुछ वर्ष और बीते, कुछ वर्षों बाद जब घर के सबसे बड़े बेटे पर्व की शादी हुई।दुल्हन ने जब राज और मेघा के पाँव छुए तो मेघा ने पहले सर पर हाथ रखा, फिर उसका पल्लू पीछे खिसका कर, उसके गाल पर हाथ रखकर बोली -

“बेटा मर्यादा रखना पल्लू नही।" और मेघा ने बाबूजी की माला चढ़ी फ़ोटो को देखा - बाबूजी फ़ोटो में कुर्सी पे बैठे, हाथ मे छड़ी लिए आत्मविश्वास और गर्व से मुस्कुरा रहे थे।

॥॥हमारी कोशिश है आपकी कशिश बनी रहे॥॥...

Copyright@ रोहित प्रधान


Comments

Anonymous  on October 18,2023

Best story i ever read

Unknown   on October 25,2023

👍🏻

Unknown  on November 25,2023

Nice!

Unknown   on November 26,2023

Bahut khub

Unknown   on November 26,2023

Bahut khub

someone  on November 26,2023

testing

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