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"हमारी कोशिश है, आपकी कशिश बनी रहे"March 10 2021
मनु : कैसा निर्णय
"भाईसाहब...थोड़ा हट जाइए । इमरजेंसी के रास्ते मे खड़े होने का भी क्या फैशन है ? "
बहुत ही परेशान होते हुए मनु चिल्लाया ।
मनु के पापा स्ट्रेचर पर थे, वो दौड़ रहा था और हाँफ रहा था ।मनु के पापा अपने दोनों हाथ सीने पर रखकर मुश्किल से साँस ले पा रहे थे। मनु चाहता था, जल्द से जल्द पापा को डॉक्टर के सपुर्द कर दे। इसलिए जल्दी में था। पर उसकी भी उम्र अब 50 की हो गयी थी।
इमरजेंसी में जाते-जाते मनु को गेट पर ही रोक लिया गया और बस उसके पापा को ही अंदर लिया गया। पापा अंदर जाते जाते बोले मनु का हाथ पकड़कर बोले :- "मनु ...कोई भी निर्णय जल्द करना, तू बहुत टाइम लगाता है तय करने में ..."
"हाँ पापा, आप निश्चिंत रहो । मैं देख लूँगा " और इतना बोलने के साथ ही उसका गला भर गया, आवाज ही नही निकल पाई, आंखों में आँसू और चहरे पर एक दबी सी मुस्कान आयी। बस एक ही शब्द गूँज रहा था... निर्णय...निर्णय!!
मनु के पापा पेशे से डॉक्टर थे। मनु बाहर रखी बेंच पर बैठ गया। अपना चश्मा उतारा, सर पीछे दीवार पर टिकाये, आँखे बंद कर, अपने उन सभी निर्णयों पर सोचने लगा जो उसने लिए थे । शुरुआत हुई जब मनु आठवीं कक्षा में था। पिताजी तब बाहर रहा करते थे। मनु के दादा भी डॉक्टर थे और मनु के परिवार में बाकी सब भी । ये बात तब की है, जब नवी कक्षा में ही आपको विषय लेना होता था। मनु के दिमाग मे हमेशा से तय था, कि वो डॉक्टर ही बनेगा।
मनु के दादा ऐसे डॉक्टर थे जिन्होंने शायद उस दौर में डॉक्टर होते हुए भी वो पैसा नही कमाया जो उनको समाज के हिसाब से इस पेशे में होते हुए कमाना चाहिए था। पर सम्मान इतना कमाया कि अपने क्लीनिक से घर आते थे, तो एक किलोमीटर की दूरी तय करने में एक घंटा लग जाता था, किसी का दर्द, तो किसी का मर्ज सुनते और इतने लोग पाँव छूते थे, जैसे कोई सन्यासी बाबा जा रहे हो और लोगो को आशीर्वाद लेना हो।
मनु के दादा अक्सर कहा करते थे "मनु, बेटा !! डॉक्टर ही बनना, इसमे सेवा है, सम्मान है, और आमदनी भी और किसी को जीवन मे क्या चाहिए? "
मनु बोलता था "हाँ दादा जी आप देखना इतना बड़ा डॉक्टर बनकर दिखाऊंगा कि अस्पताल ही खोल लूँगा। "
और दादा हँसकर कहते "हाँ भाई क्यों नही, तेरे अस्पताल में मुझे भी एक कोना दे देना । मैं बुजुर्ग कहाँ जाऊँगा?" और उसके सर पर हाथ फेरकर उसे निहारते।
लेकिन नवी कक्षा में जब मनु ने साइंस बायो ली तो मनु के पापा को बिल्कुल पसंद नही आया। जबकि खुद वो भी तो एक डॉक्टर थे । उनका एक पत्र आया जिसमे उन्होंने लिखा कि विषय बदल लो, गणित का जमाना है, तुम क्या ये बायो लेकर बैठ गए, गणित पढ़ो ।
पर दादा ने कहा, "अरे वो तो ऐसे ही बोलता है तू तो विज्ञान पढ़, डॉक्टर बन।"
ऐसे में नवी व दसवीं दोनों हो गयी और मनु ने 80% अंको से उतीर्ण की, जो बहुत बड़ी बात थी। पर तब ग्यारवी को ही कॉलेज बोलते थे। मनु के पापा ने जिद करके मनु को गणित में दाखिला दिला दिया । अब चूंकि न तो मनु डॉक्टर की तैयारी कर सकता था, न ही इंजीनियर की, उसको तो अब ग्रेजुएशन करनी थी ।
मनु गाँव छोड़ शहर आ गया।दादाजी वही कही छूट गए। उसका चयन शहर के सबसे अच्छे कॉलेज में हो रहा था। परन्तु पापा ने दाखिला इसलिए नही करवाया क्योंकि उनको लगता था, कि वहाँ पढ़ाई नही होती, बस नेतागिरी होती है ।
पढ़े लिखे पिता होने का हर्जाना तो नही कही, मनु भुगत रहा था। पर तब तक मनु को लगता था दादाजी तो बुजुर्ग है पैसा भी कहाँ बना पाए, पापा की समझ दादा से कही अच्छी है, क्योंकि पापा के पास तो शहर में कार, घर, सब बहुत सही था। तो उसको ये लगता था, डॉक्टर साहब (पापा) सही कर रहे है और खुशी से उसने एक सामान्य कॉलेज में एडमिशन ले लिया ।
एक वर्ष निकला और एक दिन डॉक्टर साहब बहुत खुश होकर घर आये, हाथ मे एक किताबो का बंडल था । वो आकर के रखा और मनु को बुलाया "मनु!... देख तेरे लिए मैंने सब समस्याओ का हल निकाल लिया है ।"
मनु सोच रहा था कौनसी समस्या ?? अभी तक तो उसे लगा ही नही की कोई समस्या है उसके जीवन मे । तभी डॉक्टर साहब खुशी से गौरान्वित होकर बोले "तू आज से सीए करेगा।"
मनु चौंक गया "क्या?" मनु के पूरे खानदान में किसी ने सीए करना तो छोड़ो, नाम भी ठीक से नही सुना होगा, 80 के दशक में सीए की बात करना, मतलब ऐसा था, जैसा मोबाइल के बारे में कल्पना करना और इस बार डॉक्टर साहब ने ये निर्णय इसलिए लिया था, क्योंकि अभी कुछ ही दिनों पहले एक विकट परिस्थिति से उनको उनके सीए ने निकाला था और वो अपने सीए से बहुत अधिक प्रभावित थे ।आख़िर उन सीए सहाब के पास डॉक्टर साहब से बड़ी कोठी व गाड़ी भी तो थी। तो बी.एस.सी के साथ-साथ शुरू हुई सीए करने की यात्रा।
इस बार दादाजी का एक पत्र डॉक्टर साहब को मिला। जो शुरू हुआ __चिरंजीवी डॉक्टर साहब मतलब पत्र में कोई संबंधों का संबोधन नहीं था न ही पुत्र ना ही बेटा लिखा था और अंत हुआ __तुम्हारा सामान्य पिता ।
पत्र में लिखा था, "बच्चे बोल नही सकते, क्योंकि वो कभी समझ का अभाव रखते है, तो कभी सम्मान करते है, पर भविष्य में ऐसा न हो, कि ज़ुबान से सम्मान करें और हृदय से अपमान करने लगे । मनु तो तेरा बेटा है, पर तु तो मेरा बेटा है, तेरे भविष्य की चिंता मुझे ज्यादा है। आशा करता हूँ, मनु ये पत्र न पढ़े और तू मेरी बात जीवन मे उतार सके, जो मैं समझाना चाहता हूँ। तू मूर्ख नही है, जो न समझे, पर तेरा जवाब भी नही आएगा, ये भी मैं जानता हूँ। पर एक बात है, कि तू सौभाग्यशाली है, तुझे मनु मिला है।"
शुरू में मनु ने सीए में भी अच्छा किया, परंतु जैसे ही ट्रेनिंग शुरू हुई, तो उसका मन उचट गया। उसको वो काम कतई पसंद नही था । तो उसने सब छोड़ व्यवसाय करने की सोची और डॉक्टर साहब बहुत प्रसन्न हुए कि उनके घर से कोई व्यवसायी होगा।
परंतु व्यवसायी बनने के लिए परिवार की या तो कोई सोच ही न हो, या व्यवसायिक सोच हो, दोनों में से कुछ एक बहुत जरूरी है। पर ये समझ लेना अत्यधिक कठिन है, व्यवसाय उस बाँस को उगाने की तरह है, जो पाँच वर्ष तक तो जमी से नही निकलता और जब निकलता है, तो एक साल में ही इतना कि आप सोच भी न सके। इतना जोखिम उठा लेना, पढे लिखो के बस का काम सामान्यतया नही होता है।
हाँ, अनपढ़ की बात दूसरी है। वो तो कर ही व्यवसाय सकता है, क्योंकि जिसके पास खोने को कोई डिग्री की प्रतिष्ठा नही, उसको क्या ही जोखिम!
अब मनु ने व्यवसाय में हाथ आजमाया वो अच्छा चल निकला, मनु का दिमाग तीन विधा वाला था । मनु ने बहुत अच्छे से व्यवसाय किया, व्यवसाय को अपनी विधा दिखा, बहुत से नये टूल विकसित भी किए और बहुत अच्छा पैसा कमाया। डॉक्टर सब बहुत खुश रहने भी लगे। बस मनु ने जो कमाया, वो व्यवसाय को बढ़ाने में वापस देता गया। दस वर्षों में ही बहुत तरक्की की मनु ने, सब सही चल रहा था। फिर अचानक कुछ वर्षों बाद एक वैश्विक मंदी आयी और सब वापस ले गई।अब मनु पर कर्जा हो गया । मनु को कुछ नहीं सुझता था, पिताजी का रोल भी जीवन में कम होने लगा था।उन्होंने इन सब पर कोई प्रतिक्रिया ही नहीं दी। दादाजी का भी परलोक गमन हो गया था।
फिर बहुत सोचने विचारने के बाद मनु ने तय किया, कि अब शायद उसे वापस सीए ही कर लेना चाहिए। मनु उम्र बहुत ज्यादा थी, पर सीए करते करते उम्र का चले जाना बड़ी आम बात है। तो ये मनु के लिए आसान था, क्योंकि न कॉलेज न कोई ट्यूशन बस अपने आप को छिपा लेना और सीए को निपटा देना। मनु फिर लग गया और एक दिन बन गया सीए। अब डॉक्टर साहब कुछ नही कहते न उनको मनु के सीए बनने की खुशी हुई । मनु ना समझा और सोचता रहा, किया तो वही जो इन्होंने चाहा, फिर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
पर कोई भी कोर्स कर लेना और उसे जीना दोनों अलग-अलग बात है । काम ने मन आज भी मनु का नही लगता था, पर कर्ज चुकाना था, दादाजी जा चुके थे, पिताजी असफल मनु के किस्से सुनाने शुरू कर चुके थे।
मनु ने जॉब शुरू कर दी, जहाँ ज्यादा मिलता, वो वही काम करता, फिर क्या देश और क्या विदेश। बस जीवन चलता गया सब कर्जा उतर गया, कुछ जमा भी हुआ।
एक दिन पिता से अपनी असफलता की कहानी सुन वो बरामदे में बैठा भीगी आंखों से कुछ सोच रहा था। मनु आज 45 वर्ष का था, माँ ने दादाजी का लिखा वो पत्र ले जाकर मनु को दिया। जो कभी दादाजी ने मनु के पिता को लिखा था और पढ़ते-पढ़ते पूरा पोस्ट कार्ड आँसुओ से गीला हो गया।
ये मनु याद कर रहा था, कि एक आवाज आई जो कि हॉस्पिटल के डॉक्टर की थी वो पास खड़ा कह रहा था " मनु जी, पोजीशन क्रिटिकल है, जल्दी निर्णय लीजिये क्या करना है ?? हमे जल्द ही तय करना है।"
मनु बस इतना कहा "एक मिनिट डॉक्टर सहाब"
और अपना फ़ोन निकाला फिर एक नंबर डायल किया जिस पर लिखा था
- बड़े मामाजी ।।
जैसे निर्णय शब्द से मनु का कोई वास्ता ही न हो। एक ऐसा व्यक्ति जिसकी कहानी में इतने बदलाव हों और हर बदलाव में जो खरा भी उतरा हो, वही करता गया जो करवाया गया। जो मन से किया उसमे झंडे भी गाड़े, बस नियति ने साथ ना दिया हो, फिर उठ खड़ा हुआ हो, फिर सफलता लिखी हो, ऑफिस में जिसने अपने उसूलों को ना छोड़ हो, जहाँ काम किया अपनी शर्तों पे किया। सब कमाया धन, प्रतिष्ठा, सम्मान फिर भी असफल ही रहा, क्यों? आज भी निर्णय शब्द से डरता क्यों था? क्या किया ऐसा वो समझ नहीं पाया? आज भी पचास की आयु में कुछ तय नहीं करता, बस पूछता है, क्यों?
॥॥ कोशिश है हमारी आपकी कशिश बनी रहे॥॥...
Copyright @ रोहित प्रधान
बहुत ही परेशान होते हुए मनु चिल्लाया ।
मनु के पापा स्ट्रेचर पर थे, वो दौड़ रहा था और हाँफ रहा था ।मनु के पापा अपने दोनों हाथ सीने पर रखकर मुश्किल से साँस ले पा रहे थे। मनु चाहता था, जल्द से जल्द पापा को डॉक्टर के सपुर्द कर दे। इसलिए जल्दी में था। पर उसकी भी उम्र अब 50 की हो गयी थी।
इमरजेंसी में जाते-जाते मनु को गेट पर ही रोक लिया गया और बस उसके पापा को ही अंदर लिया गया। पापा अंदर जाते जाते बोले मनु का हाथ पकड़कर बोले :- "मनु ...कोई भी निर्णय जल्द करना, तू बहुत टाइम लगाता है तय करने में ..."
"हाँ पापा, आप निश्चिंत रहो । मैं देख लूँगा " और इतना बोलने के साथ ही उसका गला भर गया, आवाज ही नही निकल पाई, आंखों में आँसू और चहरे पर एक दबी सी मुस्कान आयी। बस एक ही शब्द गूँज रहा था... निर्णय...निर्णय!!
मनु के पापा पेशे से डॉक्टर थे। मनु बाहर रखी बेंच पर बैठ गया। अपना चश्मा उतारा, सर पीछे दीवार पर टिकाये, आँखे बंद कर, अपने उन सभी निर्णयों पर सोचने लगा जो उसने लिए थे । शुरुआत हुई जब मनु आठवीं कक्षा में था। पिताजी तब बाहर रहा करते थे। मनु के दादा भी डॉक्टर थे और मनु के परिवार में बाकी सब भी । ये बात तब की है, जब नवी कक्षा में ही आपको विषय लेना होता था। मनु के दिमाग मे हमेशा से तय था, कि वो डॉक्टर ही बनेगा।
मनु के दादा ऐसे डॉक्टर थे जिन्होंने शायद उस दौर में डॉक्टर होते हुए भी वो पैसा नही कमाया जो उनको समाज के हिसाब से इस पेशे में होते हुए कमाना चाहिए था। पर सम्मान इतना कमाया कि अपने क्लीनिक से घर आते थे, तो एक किलोमीटर की दूरी तय करने में एक घंटा लग जाता था, किसी का दर्द, तो किसी का मर्ज सुनते और इतने लोग पाँव छूते थे, जैसे कोई सन्यासी बाबा जा रहे हो और लोगो को आशीर्वाद लेना हो।
मनु के दादा अक्सर कहा करते थे "मनु, बेटा !! डॉक्टर ही बनना, इसमे सेवा है, सम्मान है, और आमदनी भी और किसी को जीवन मे क्या चाहिए? "
मनु बोलता था "हाँ दादा जी आप देखना इतना बड़ा डॉक्टर बनकर दिखाऊंगा कि अस्पताल ही खोल लूँगा। "
और दादा हँसकर कहते "हाँ भाई क्यों नही, तेरे अस्पताल में मुझे भी एक कोना दे देना । मैं बुजुर्ग कहाँ जाऊँगा?" और उसके सर पर हाथ फेरकर उसे निहारते।
लेकिन नवी कक्षा में जब मनु ने साइंस बायो ली तो मनु के पापा को बिल्कुल पसंद नही आया। जबकि खुद वो भी तो एक डॉक्टर थे । उनका एक पत्र आया जिसमे उन्होंने लिखा कि विषय बदल लो, गणित का जमाना है, तुम क्या ये बायो लेकर बैठ गए, गणित पढ़ो ।
पर दादा ने कहा, "अरे वो तो ऐसे ही बोलता है तू तो विज्ञान पढ़, डॉक्टर बन।"
ऐसे में नवी व दसवीं दोनों हो गयी और मनु ने 80% अंको से उतीर्ण की, जो बहुत बड़ी बात थी। पर तब ग्यारवी को ही कॉलेज बोलते थे। मनु के पापा ने जिद करके मनु को गणित में दाखिला दिला दिया । अब चूंकि न तो मनु डॉक्टर की तैयारी कर सकता था, न ही इंजीनियर की, उसको तो अब ग्रेजुएशन करनी थी ।
मनु गाँव छोड़ शहर आ गया।दादाजी वही कही छूट गए। उसका चयन शहर के सबसे अच्छे कॉलेज में हो रहा था। परन्तु पापा ने दाखिला इसलिए नही करवाया क्योंकि उनको लगता था, कि वहाँ पढ़ाई नही होती, बस नेतागिरी होती है ।
पढ़े लिखे पिता होने का हर्जाना तो नही कही, मनु भुगत रहा था। पर तब तक मनु को लगता था दादाजी तो बुजुर्ग है पैसा भी कहाँ बना पाए, पापा की समझ दादा से कही अच्छी है, क्योंकि पापा के पास तो शहर में कार, घर, सब बहुत सही था। तो उसको ये लगता था, डॉक्टर साहब (पापा) सही कर रहे है और खुशी से उसने एक सामान्य कॉलेज में एडमिशन ले लिया ।
एक वर्ष निकला और एक दिन डॉक्टर साहब बहुत खुश होकर घर आये, हाथ मे एक किताबो का बंडल था । वो आकर के रखा और मनु को बुलाया "मनु!... देख तेरे लिए मैंने सब समस्याओ का हल निकाल लिया है ।"
मनु सोच रहा था कौनसी समस्या ?? अभी तक तो उसे लगा ही नही की कोई समस्या है उसके जीवन मे । तभी डॉक्टर साहब खुशी से गौरान्वित होकर बोले "तू आज से सीए करेगा।"
मनु चौंक गया "क्या?" मनु के पूरे खानदान में किसी ने सीए करना तो छोड़ो, नाम भी ठीक से नही सुना होगा, 80 के दशक में सीए की बात करना, मतलब ऐसा था, जैसा मोबाइल के बारे में कल्पना करना और इस बार डॉक्टर साहब ने ये निर्णय इसलिए लिया था, क्योंकि अभी कुछ ही दिनों पहले एक विकट परिस्थिति से उनको उनके सीए ने निकाला था और वो अपने सीए से बहुत अधिक प्रभावित थे ।आख़िर उन सीए सहाब के पास डॉक्टर साहब से बड़ी कोठी व गाड़ी भी तो थी। तो बी.एस.सी के साथ-साथ शुरू हुई सीए करने की यात्रा।
इस बार दादाजी का एक पत्र डॉक्टर साहब को मिला। जो शुरू हुआ __चिरंजीवी डॉक्टर साहब मतलब पत्र में कोई संबंधों का संबोधन नहीं था न ही पुत्र ना ही बेटा लिखा था और अंत हुआ __तुम्हारा सामान्य पिता ।
पत्र में लिखा था, "बच्चे बोल नही सकते, क्योंकि वो कभी समझ का अभाव रखते है, तो कभी सम्मान करते है, पर भविष्य में ऐसा न हो, कि ज़ुबान से सम्मान करें और हृदय से अपमान करने लगे । मनु तो तेरा बेटा है, पर तु तो मेरा बेटा है, तेरे भविष्य की चिंता मुझे ज्यादा है। आशा करता हूँ, मनु ये पत्र न पढ़े और तू मेरी बात जीवन मे उतार सके, जो मैं समझाना चाहता हूँ। तू मूर्ख नही है, जो न समझे, पर तेरा जवाब भी नही आएगा, ये भी मैं जानता हूँ। पर एक बात है, कि तू सौभाग्यशाली है, तुझे मनु मिला है।"
शुरू में मनु ने सीए में भी अच्छा किया, परंतु जैसे ही ट्रेनिंग शुरू हुई, तो उसका मन उचट गया। उसको वो काम कतई पसंद नही था । तो उसने सब छोड़ व्यवसाय करने की सोची और डॉक्टर साहब बहुत प्रसन्न हुए कि उनके घर से कोई व्यवसायी होगा।
परंतु व्यवसायी बनने के लिए परिवार की या तो कोई सोच ही न हो, या व्यवसायिक सोच हो, दोनों में से कुछ एक बहुत जरूरी है। पर ये समझ लेना अत्यधिक कठिन है, व्यवसाय उस बाँस को उगाने की तरह है, जो पाँच वर्ष तक तो जमी से नही निकलता और जब निकलता है, तो एक साल में ही इतना कि आप सोच भी न सके। इतना जोखिम उठा लेना, पढे लिखो के बस का काम सामान्यतया नही होता है।
हाँ, अनपढ़ की बात दूसरी है। वो तो कर ही व्यवसाय सकता है, क्योंकि जिसके पास खोने को कोई डिग्री की प्रतिष्ठा नही, उसको क्या ही जोखिम!
अब मनु ने व्यवसाय में हाथ आजमाया वो अच्छा चल निकला, मनु का दिमाग तीन विधा वाला था । मनु ने बहुत अच्छे से व्यवसाय किया, व्यवसाय को अपनी विधा दिखा, बहुत से नये टूल विकसित भी किए और बहुत अच्छा पैसा कमाया। डॉक्टर सब बहुत खुश रहने भी लगे। बस मनु ने जो कमाया, वो व्यवसाय को बढ़ाने में वापस देता गया। दस वर्षों में ही बहुत तरक्की की मनु ने, सब सही चल रहा था। फिर अचानक कुछ वर्षों बाद एक वैश्विक मंदी आयी और सब वापस ले गई।अब मनु पर कर्जा हो गया । मनु को कुछ नहीं सुझता था, पिताजी का रोल भी जीवन में कम होने लगा था।उन्होंने इन सब पर कोई प्रतिक्रिया ही नहीं दी। दादाजी का भी परलोक गमन हो गया था।
फिर बहुत सोचने विचारने के बाद मनु ने तय किया, कि अब शायद उसे वापस सीए ही कर लेना चाहिए। मनु उम्र बहुत ज्यादा थी, पर सीए करते करते उम्र का चले जाना बड़ी आम बात है। तो ये मनु के लिए आसान था, क्योंकि न कॉलेज न कोई ट्यूशन बस अपने आप को छिपा लेना और सीए को निपटा देना। मनु फिर लग गया और एक दिन बन गया सीए। अब डॉक्टर साहब कुछ नही कहते न उनको मनु के सीए बनने की खुशी हुई । मनु ना समझा और सोचता रहा, किया तो वही जो इन्होंने चाहा, फिर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
पर कोई भी कोर्स कर लेना और उसे जीना दोनों अलग-अलग बात है । काम ने मन आज भी मनु का नही लगता था, पर कर्ज चुकाना था, दादाजी जा चुके थे, पिताजी असफल मनु के किस्से सुनाने शुरू कर चुके थे।
मनु ने जॉब शुरू कर दी, जहाँ ज्यादा मिलता, वो वही काम करता, फिर क्या देश और क्या विदेश। बस जीवन चलता गया सब कर्जा उतर गया, कुछ जमा भी हुआ।
एक दिन पिता से अपनी असफलता की कहानी सुन वो बरामदे में बैठा भीगी आंखों से कुछ सोच रहा था। मनु आज 45 वर्ष का था, माँ ने दादाजी का लिखा वो पत्र ले जाकर मनु को दिया। जो कभी दादाजी ने मनु के पिता को लिखा था और पढ़ते-पढ़ते पूरा पोस्ट कार्ड आँसुओ से गीला हो गया।
ये मनु याद कर रहा था, कि एक आवाज आई जो कि हॉस्पिटल के डॉक्टर की थी वो पास खड़ा कह रहा था " मनु जी, पोजीशन क्रिटिकल है, जल्दी निर्णय लीजिये क्या करना है ?? हमे जल्द ही तय करना है।"
मनु बस इतना कहा "एक मिनिट डॉक्टर सहाब"
और अपना फ़ोन निकाला फिर एक नंबर डायल किया जिस पर लिखा था
- बड़े मामाजी ।।
जैसे निर्णय शब्द से मनु का कोई वास्ता ही न हो। एक ऐसा व्यक्ति जिसकी कहानी में इतने बदलाव हों और हर बदलाव में जो खरा भी उतरा हो, वही करता गया जो करवाया गया। जो मन से किया उसमे झंडे भी गाड़े, बस नियति ने साथ ना दिया हो, फिर उठ खड़ा हुआ हो, फिर सफलता लिखी हो, ऑफिस में जिसने अपने उसूलों को ना छोड़ हो, जहाँ काम किया अपनी शर्तों पे किया। सब कमाया धन, प्रतिष्ठा, सम्मान फिर भी असफल ही रहा, क्यों? आज भी निर्णय शब्द से डरता क्यों था? क्या किया ऐसा वो समझ नहीं पाया? आज भी पचास की आयु में कुछ तय नहीं करता, बस पूछता है, क्यों?
॥॥ कोशिश है हमारी आपकी कशिश बनी रहे॥॥...
Copyright @ रोहित प्रधान
Comments
Unknown on October 25,2023Relatable
comment on November 26,2023check
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