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"हमारी कोशिश है, आपकी कशिश बनी रहे"November 08 2017
अनोखा व्यवसायी!
"नमस्ते अंकल कैसे है?" मैं हाथ जोड़ते हुए बोला
"बढ़िया है, सब मौज है अपना तो .. " अंकल ने पंजाबी भांगड़ा स्टाइल में दोनों हाथो की अंगुलियां ऊपर करते हुए बोला |
एक करीब 80 साल का व्यक्ति जिसके पुरे सफ़ेद बाल हो चुके थे। एक दम दुबला पतला शरीर, मैली सी शर्ट, और छोटी पेंट , फूटपाथ पर बैठा कुछ सामान बेच रहा था |
आने जाने वाले लोगो को धीमी आवाज में अपना हाथ हिला कर बुला रहा था ।
" आओ भाई, देखो देखो कुछ भी ले जाओ 10 रूपए में , बस 10 रूपए में , ओनली 10 rs..."
अंकल के पीछे एक साइकिल खड़ी थी, और एक थैला अंकल के पाँव में पड़ा था, शायाद ये सब सामान वो अपने इसी थैले में लाये थे | अंकल जो सामान बेच रहे थे,वो मैं देखने लगा - वाक़ई क्या नहीं था उसमे ?
कुछ पेन जो की पुराने थे, इनमे से चलता एक भी नहीं था ।
कुछ लीफलेट, पेम्पलेट , कुछ शादी के कार्ड , कुछ बहुत पुरानी किताबे जैसे छोटू मोटू , जो आपके अखबार से साथ फ्री आती है, कुछ ऐसी मैगजीन जो फ्री में मिले तो भी कोई न ले और यहाँ तो पैसे भी देने पड़ रहे थे । और क्या था वहां ,और था कागज की उपयोग हो चुकी रंगोली, चित्र, विज्ञापन सामग्री जैसे ब्रोशर, पुराना केलेंडर , हनुमान चालीसा और यूनिवर्सिटी में खड़े होने वाले कैंडिडेट का फोटो लगा प्रमोशनल आईडी।
इन सब में एक बात बहुत इम्पोर्टेन्ट थी वो ये की कोई भी चीज दो नहीं थी सबका एक एक पीस ही था ।
और सबसे बड़ी बात कुछ भी ऐसा नहीं था जो मेरे काम आये और शायद अन्य समान्य किसी के,
सब कुछ रोड से उठाया हुआ था।
फिर भी अंकल इस आत्मविश्वास से बेच रहे थे जैसे की सब कुछ बहुत उपयोगी है ।
अब मुझसे रहा नहीं गया और मैंने पूछ लिया
"अंकल, कहाँ से लाते हो ये सब? जो कुछ काम का नहीं है और आप बेचने लेकर आते हो "
मेरे इस प्रश्न पर जैसा की मैंने सोचा था कि अंकल नाराज हो जायेंगे और गुस्से से जवाब देंगे पर हुआ इसका बिल्कुल उल्टा वो मुझे सहमत करने के लिए एक एक चीज को हिलाते हुए बोले ,
" बम्बई से लाता हूँ सारा माल, सब बहुत काम का है आप चुन लो जो आपको पसंद हो, देखो ये किताब बच्चो की कहानी है इसमें ये देखो महात्मा गाँधी का चित्र, ये देखो झाँसी की रानी, भगत सिंह का चित्र, ये पेन, भगवान् का फोटो, सब कुछ है, आपको जो पसंद हो ले सकते हो ।"
मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये सब कुछ जानता भी है कि इसके पास कुछ नहीं है जो ये बेच सके,
फिर इतनी हिम्मत लेकर कहाँ से आता है और लोगो को लेने के लिए प्रेरित भी करने की कोशिश कर रहा है ।
अंकल बात चीत का सिलसिला अब मैंने शुरू कर दिया
"तो अंकल आप के कितने बच्चे है ?"
"तीन बच्चे है पोते-पोती है 14 लोग है परिवार में "
"और आंटी ?"
"वो भी है।" अंकल ने मुस्कुराते हुए कहा
"तो अंकल आपका नाम क्या है ?"
अंकल ने अपने हाथ पर अपने नाम का टेटू दिखाते हुए कहा " डी सी खत्री "
"तो अंकल आप शुरू से ही यही काम करते है या पहले कुछ और करते थे ?"
"पहले प्राइवेट नौकरी करते थे दुकानों पर 100 रुपये मिलते थे। वो भी तब बहुत होते थे, अरे मैं तो जवाहर लाल नेहरु को भी देखा हूँ "
"तो आपने पार्टीशन भी देखा होगा ?"
इस प्रश्न से वो बहुत उदास से हो गए और बोले
"हाँ 1947 में 12 साल का था मैं, राजा हुआ करते थे तब, सब याद है मुझे, कुछ नहीं भुला मैं, हम लोग सिंध से आये थे। पुरे देश भर में अलग-अलग बस गए। हम जयपुर आ गए। यहाँ के राजा को भी देखा है मैंने मानसिंह, उसकी पत्नी थी गायत्री देवी, सिन्धु नदी थी बहुत बड़ी, मानसरोवर से निकलती थी फिर पंजाब से होते हुए कराची में एक बहुत बड़ा समुन्दर था। जैसा कि अपने बम्बई में है ,वहां मिल जाती थी। अगर वो इंडिया आ जाए तो पानी ही पानी हो जाए और पानी की कमी पूरी हो जाए ..." अंकल बोले जा रहे थे ।आस पास बहुत से लोग इकठ्ठा हो चुके थे और बाते सुन रहे थे और कुछ मुस्कुरा रहे थे और कुछ हंस रहे थे। पर सब इन सब का आनन्द ले रहे थे, अंकल भी मस्त होकर हाथ के इशारे से बता रहे थे ।
लोगो ने अंकल से कुछ सामान भी खरीद लिया ।
"तो अंकल आप ये क्यों करते है ? आपको मतलब ऐसा क्यों लगा कि ये काम करना चाहिए ?"
अंकल मुस्कुराने लगे और बोले " बस समय कट जाता है कुछ खर्चा पानी आ जाता है, पर मैं रोज नहीं आता जब प्रदर्शनी लगती है तब ही आता हूँ ."
"आपको कैसे पता लगता है अन्दर प्रदर्शनी लगी है ?"
" अरे अखबार से पता लग जाता है " अंकल अभिमान से बोले
" आपको पढना भी आता है?"
"हाँ मैं रोज अखबार पढता हूँ , पहले तो बस सिन्धी आती थी। सब बोलते थे हिंदी सीख लो, हम नहीं माने फिर मजबूरी हुई तो एक ट्रांसलेशन की बुक से हिंदी सीख ली।"
मुझे कही जाना था मैं लेट हो रहा था तो मैंने अब चलने के लिए तैयार होते हुए बोला
"तो अंकल आपकी सबसे अच्छी चीज और जो मेरे काम की हो बता दो तो मैं ले जाता हूँ "
अंकल बोले "सब चीजे अच्छी है, आप कोई सी भी ले लो। मैं खराब सामान नहीं लाता, बम्बई से लाता हूँ "
अंत मे एक बार औऱ मैंने पूछ लिया "अंकल क्यों करते हो ?"
अब वो जो बोले "जिंदगी अपना कुछ करके कमाने का मन था।नौकरी अच्छी नही लगती थी तो बस..."
और वो मुस्कुरा दिए और अंत में हाथ जोड़ते हुए बोले "आपने इतनी देर बाते कि बहुत मजा आया। मेरे बारे मैं पूछा अच्छा लगा ।"
और मैं सोचने लगा किस तरह का व्यक्ति है, न पागल है, न जीनियस, जानता है कचरे से भी बेकार चीज बेच रहा है। जो नहीं बिक सकती। फिर भी बेच रहा है बिना संकोच के और सच मानिये मेरे सामने उन्होंने 60 रूपए भी कमाए। कैसे कोई हार मान सकता है,, कैसे कोई अपने सपनो को पूरा करने में कतराता है, कैसे जिंदगी अंकल जैसे लोगो को गढ़ देती है ।
इतनी हिम्मत कहाँ से लाये होंगे। और कितने आत्मविश्वास से बेच रहे थे वो |
हम लोग कितना जल्दी नेगेटिव हो जाते है। कितना इस समाज की सोचते है। इतना कुछ भाग दौड़ के बाद भी कितना खुश है? और एक ये है जो खुश है, परेशान नहीं। अपने ऐसे काम को एन्जॉय कर रहे है, जो कि सोच से भी परे है , माना ये बिज़नस का कोई तरीका नहीं है। पर जिंदगी जीने का तो तरीका हो सकता है , ऐसा व्यक्ति जाते जाते मलाल नही चाहता कि ये नही कर सके। तो उसने शुरू कर दिया,कोई निवेश नही, अनुकरणीय भी नहीं ,तो क्या ये क्रिएटिविटी नहीं ? , क्या ये हैप्पीनेस नहीं? क्या ये जिंदगी नहीं ?
क्या है जो, उससे ये करवा रहा है और वो रोज उन प्रदर्शनी के दिनों में 50 रुपये से 100 रुपये का सामान तो बेच ही देते है ।
कोई इसलिए उनका सामान नही खरीद रहा कि सामान अच्छा है, पर उस आदमी की हिम्मत, ऊर्जा , दृढ़निश्चय देख ही शायद लोग पिघल जाते है।
Copyright @ रोहित प्रधान
"बढ़िया है, सब मौज है अपना तो .. " अंकल ने पंजाबी भांगड़ा स्टाइल में दोनों हाथो की अंगुलियां ऊपर करते हुए बोला |
एक करीब 80 साल का व्यक्ति जिसके पुरे सफ़ेद बाल हो चुके थे। एक दम दुबला पतला शरीर, मैली सी शर्ट, और छोटी पेंट , फूटपाथ पर बैठा कुछ सामान बेच रहा था |
आने जाने वाले लोगो को धीमी आवाज में अपना हाथ हिला कर बुला रहा था ।
" आओ भाई, देखो देखो कुछ भी ले जाओ 10 रूपए में , बस 10 रूपए में , ओनली 10 rs..."
अंकल के पीछे एक साइकिल खड़ी थी, और एक थैला अंकल के पाँव में पड़ा था, शायाद ये सब सामान वो अपने इसी थैले में लाये थे | अंकल जो सामान बेच रहे थे,वो मैं देखने लगा - वाक़ई क्या नहीं था उसमे ?
कुछ पेन जो की पुराने थे, इनमे से चलता एक भी नहीं था ।
कुछ लीफलेट, पेम्पलेट , कुछ शादी के कार्ड , कुछ बहुत पुरानी किताबे जैसे छोटू मोटू , जो आपके अखबार से साथ फ्री आती है, कुछ ऐसी मैगजीन जो फ्री में मिले तो भी कोई न ले और यहाँ तो पैसे भी देने पड़ रहे थे । और क्या था वहां ,और था कागज की उपयोग हो चुकी रंगोली, चित्र, विज्ञापन सामग्री जैसे ब्रोशर, पुराना केलेंडर , हनुमान चालीसा और यूनिवर्सिटी में खड़े होने वाले कैंडिडेट का फोटो लगा प्रमोशनल आईडी।
इन सब में एक बात बहुत इम्पोर्टेन्ट थी वो ये की कोई भी चीज दो नहीं थी सबका एक एक पीस ही था ।
और सबसे बड़ी बात कुछ भी ऐसा नहीं था जो मेरे काम आये और शायद अन्य समान्य किसी के,
सब कुछ रोड से उठाया हुआ था।
फिर भी अंकल इस आत्मविश्वास से बेच रहे थे जैसे की सब कुछ बहुत उपयोगी है ।
अब मुझसे रहा नहीं गया और मैंने पूछ लिया
"अंकल, कहाँ से लाते हो ये सब? जो कुछ काम का नहीं है और आप बेचने लेकर आते हो "
मेरे इस प्रश्न पर जैसा की मैंने सोचा था कि अंकल नाराज हो जायेंगे और गुस्से से जवाब देंगे पर हुआ इसका बिल्कुल उल्टा वो मुझे सहमत करने के लिए एक एक चीज को हिलाते हुए बोले ,
" बम्बई से लाता हूँ सारा माल, सब बहुत काम का है आप चुन लो जो आपको पसंद हो, देखो ये किताब बच्चो की कहानी है इसमें ये देखो महात्मा गाँधी का चित्र, ये देखो झाँसी की रानी, भगत सिंह का चित्र, ये पेन, भगवान् का फोटो, सब कुछ है, आपको जो पसंद हो ले सकते हो ।"
मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये सब कुछ जानता भी है कि इसके पास कुछ नहीं है जो ये बेच सके,
फिर इतनी हिम्मत लेकर कहाँ से आता है और लोगो को लेने के लिए प्रेरित भी करने की कोशिश कर रहा है ।
अंकल बात चीत का सिलसिला अब मैंने शुरू कर दिया
"तो अंकल आप के कितने बच्चे है ?"
"तीन बच्चे है पोते-पोती है 14 लोग है परिवार में "
"और आंटी ?"
"वो भी है।" अंकल ने मुस्कुराते हुए कहा
"तो अंकल आपका नाम क्या है ?"
अंकल ने अपने हाथ पर अपने नाम का टेटू दिखाते हुए कहा " डी सी खत्री "
"तो अंकल आप शुरू से ही यही काम करते है या पहले कुछ और करते थे ?"
"पहले प्राइवेट नौकरी करते थे दुकानों पर 100 रुपये मिलते थे। वो भी तब बहुत होते थे, अरे मैं तो जवाहर लाल नेहरु को भी देखा हूँ "
"तो आपने पार्टीशन भी देखा होगा ?"
इस प्रश्न से वो बहुत उदास से हो गए और बोले
"हाँ 1947 में 12 साल का था मैं, राजा हुआ करते थे तब, सब याद है मुझे, कुछ नहीं भुला मैं, हम लोग सिंध से आये थे। पुरे देश भर में अलग-अलग बस गए। हम जयपुर आ गए। यहाँ के राजा को भी देखा है मैंने मानसिंह, उसकी पत्नी थी गायत्री देवी, सिन्धु नदी थी बहुत बड़ी, मानसरोवर से निकलती थी फिर पंजाब से होते हुए कराची में एक बहुत बड़ा समुन्दर था। जैसा कि अपने बम्बई में है ,वहां मिल जाती थी। अगर वो इंडिया आ जाए तो पानी ही पानी हो जाए और पानी की कमी पूरी हो जाए ..." अंकल बोले जा रहे थे ।आस पास बहुत से लोग इकठ्ठा हो चुके थे और बाते सुन रहे थे और कुछ मुस्कुरा रहे थे और कुछ हंस रहे थे। पर सब इन सब का आनन्द ले रहे थे, अंकल भी मस्त होकर हाथ के इशारे से बता रहे थे ।
लोगो ने अंकल से कुछ सामान भी खरीद लिया ।
"तो अंकल आप ये क्यों करते है ? आपको मतलब ऐसा क्यों लगा कि ये काम करना चाहिए ?"
अंकल मुस्कुराने लगे और बोले " बस समय कट जाता है कुछ खर्चा पानी आ जाता है, पर मैं रोज नहीं आता जब प्रदर्शनी लगती है तब ही आता हूँ ."
"आपको कैसे पता लगता है अन्दर प्रदर्शनी लगी है ?"
" अरे अखबार से पता लग जाता है " अंकल अभिमान से बोले
" आपको पढना भी आता है?"
"हाँ मैं रोज अखबार पढता हूँ , पहले तो बस सिन्धी आती थी। सब बोलते थे हिंदी सीख लो, हम नहीं माने फिर मजबूरी हुई तो एक ट्रांसलेशन की बुक से हिंदी सीख ली।"
मुझे कही जाना था मैं लेट हो रहा था तो मैंने अब चलने के लिए तैयार होते हुए बोला
"तो अंकल आपकी सबसे अच्छी चीज और जो मेरे काम की हो बता दो तो मैं ले जाता हूँ "
अंकल बोले "सब चीजे अच्छी है, आप कोई सी भी ले लो। मैं खराब सामान नहीं लाता, बम्बई से लाता हूँ "
अंत मे एक बार औऱ मैंने पूछ लिया "अंकल क्यों करते हो ?"
अब वो जो बोले "जिंदगी अपना कुछ करके कमाने का मन था।नौकरी अच्छी नही लगती थी तो बस..."
और वो मुस्कुरा दिए और अंत में हाथ जोड़ते हुए बोले "आपने इतनी देर बाते कि बहुत मजा आया। मेरे बारे मैं पूछा अच्छा लगा ।"
और मैं सोचने लगा किस तरह का व्यक्ति है, न पागल है, न जीनियस, जानता है कचरे से भी बेकार चीज बेच रहा है। जो नहीं बिक सकती। फिर भी बेच रहा है बिना संकोच के और सच मानिये मेरे सामने उन्होंने 60 रूपए भी कमाए। कैसे कोई हार मान सकता है,, कैसे कोई अपने सपनो को पूरा करने में कतराता है, कैसे जिंदगी अंकल जैसे लोगो को गढ़ देती है ।
इतनी हिम्मत कहाँ से लाये होंगे। और कितने आत्मविश्वास से बेच रहे थे वो |
हम लोग कितना जल्दी नेगेटिव हो जाते है। कितना इस समाज की सोचते है। इतना कुछ भाग दौड़ के बाद भी कितना खुश है? और एक ये है जो खुश है, परेशान नहीं। अपने ऐसे काम को एन्जॉय कर रहे है, जो कि सोच से भी परे है , माना ये बिज़नस का कोई तरीका नहीं है। पर जिंदगी जीने का तो तरीका हो सकता है , ऐसा व्यक्ति जाते जाते मलाल नही चाहता कि ये नही कर सके। तो उसने शुरू कर दिया,कोई निवेश नही, अनुकरणीय भी नहीं ,तो क्या ये क्रिएटिविटी नहीं ? , क्या ये हैप्पीनेस नहीं? क्या ये जिंदगी नहीं ?
क्या है जो, उससे ये करवा रहा है और वो रोज उन प्रदर्शनी के दिनों में 50 रुपये से 100 रुपये का सामान तो बेच ही देते है ।
कोई इसलिए उनका सामान नही खरीद रहा कि सामान अच्छा है, पर उस आदमी की हिम्मत, ऊर्जा , दृढ़निश्चय देख ही शायद लोग पिघल जाते है।
Copyright @ रोहित प्रधान
Comments
Prathamesh on December 23,2024Nice 👍
Unknown on December 23,2024Very nice
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