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"हमारी कोशिश है, आपकी कशिश बनी रहे"December 11 2023
वीणा की वाणी
रात बहुत हो गई थी, वीणा झूलने वाली कुर्सी पर बैठी अपने “राम के खाते” की कॉपी को भर रही थी ।
“अरे आंटी! आज सोयी नहीं आप ?, क्या हुआ सब ठीक तो है ?” जाली वाले गेट के बाहर से मिथलेश बोला ।
“हाँ, बेटा ! बिगड़ने को ज़्यादा कुछ है नहीं अब, जो अब कुछ बिगड़ा, तो कुछ और बचेगा नहीं ।तो मानो सब ठीक ही होगा ।” वीणा आँटी ने अपना पेन वाला हाथ उठाते हुए मुस्कुराकर बोला ।
मिथलेश भी मुस्कुराकर बिना कुछ बोले सीढ़ियाँ चढ़ गया ।जैसे आँटी की आवाज़ सुनना ही उसका ध्येय था ।
“ठीक तो है सब ? सब ठीक होगा।” बड़बड़ाते हुए वीणा भूतकाल में इन शब्दों में खो गई ।
उस दिन भी यही पूछा था माँ ने
“ठीक तो है सब ?”
जब वीणा अपनी छोटी बहन को गोद में लेकर खिला रही थी और पापा अचानक चौक में गिर गये थे । फिर वीणा चिल्लाकर बहन को गोद में लेकर ही दौड़ पड़ी थी ।
“माँ …माँ …! .देखो क्या हुआ है पापा को ?”
“क्या हुआ वीणा ? क्यों चिल्ला रही है ? ठीक तो है सब ?” माँ बोली
“पता नहीं माँ ! बाबूजी गिर गये है, चौक में कुछ बोल नहीं रहे ।”
माँ खाना बनाना छोड़, अपने आटे से सने हुए हाथों के साथ, अपना सात महीने का गर्भ लिए दौड़ी ।
“क्या हुआ? वीणा के बाबूजी उठो, वीणा भाग के जा, किसी को बाहर से बुला ला, …जल्दी जा ”
छ: बहनों में सबसे बड़ी चौदह साल की वीणा, सबसे छोटी दो साल की छुटकी को गोद में लेकर हवेली के बाहर दौड़ी ।
“ नानू काका , रामू भैया , जल्दी आओ बाबूजी को कुछ हो गया है ।” वो चीख रही थी ।
धीरे धीरे लोग इकट्ठे हो गए वीणा की माँ पल्लू लेकर अंदर चली गई। सब लोग कोशिश कर रहे थे, कि वीणा के बाबूजी कुछ बोले। पर वो कुछ ना बोले सब जतन जारी थे । शरीर ठंडा पड़ चुका था ।
एक बोला “अरे! भोलाराम जी को जल्दी उठाओ और इनको लेकर चलो अस्पताल ।”
दूसरा बोला “ अरे ! भोलाराम जी नहीं रहे अब वो, सब परिवार को इकट्ठा करो ।“
तीसरा बोला “ पर कोई पता तो करो पहले, क्या हुआ है ? ऐसे कैसे कुछ भी मान लो….“
सब अपने-अपने क़यास लगा रहे थे ।
समझ नहीं आया बच्चियों को और उनकी माँ को की क्या चल रहा है ?
तभी अंदर से वीणा की माँ ने इशारे से वीणा को रसोई घर में बुलाया। अपने पल्लू की गाँठ को खोलती हुई , कुछ पैसे निकाल कर बोली
“ले वीणा! ये चार आने ले जा और जल्दी से गाड़ी में बैठकर महाराज जी के पास जा और सब बता देना जो हुआ है।”
वीणा को नहीं पता क्या बताना है, पर वो पैसे लेकर महाराज का रुख़ कर बिना सोचे समझे निकल गई ।
पाँच किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद, जब वो महाराज के पास पहुँची। तब महाराज समधि में थे ।
वीणा ने सोचा - बोले या नहीं पर उसे कहाँ नियम पता थे ? तो उसने हालात देखकर बोलना ही उचित समझा ।
“महाराज जी, प्रणाम मैं वीणा, भोलाराम जी की बड़ी बेटी, माँ ने भेजा है , बाबूजी चौक में गिर गये है, लोग इकट्ठा है , बहुत कुछ कह रहे है, शायद बाबूजी नहीं रहे ।”
इतना सुनते ही महाराज ने आँख खोली और बस इतना बोले
“क्या भोलाराम !,
फिर धीरे से कुछ सोचकर बोले “ इतना जल्दी? हे भगवान ! “ फिर उठे कुछ फल अंदर कुटिया से लाये और वीणा को देते हुए बोले
“बेटा ! ये फल तू खा लेना, कुछ ले जाना और ये एक रुपया लेती जा, कुछ घर के लिए भी ले जाना । माँ को बोलना सही समय होगा तब आऊँगा ।माँ को कुछ खिला ज़रूर देना , उसका भूखा रहना ठीक नहीं ” और गोद में बैठी छुटकीं के सर पर हाथ फेरा और वीणा के गाल पर और फिर बोले
“ सब ठीक है ।”
वीणा को समझ नहीं आया क्या ठीक है ?
सब इतने कम शब्दों में क्यों बात कर रहे है ।
सुबह से भूखी वीणा वापस आते हुए दस पैसे का एक क्रीम रोल ख़रीद खाने लगी और छुटकी को भी उसी में से खिला दिया । उसे ये समझ नहीं थी कि मेरा बाप जा चुका है ।उसके ना कोई आँसू आया, ना भूख ही मरी। घर पहुँची तो सब बदल चुका था ।
एक छोटी मटकी, पास जलता कंडा, सर मुंडवाते कुछ लोग, निर्देश देते ताऊजी, बेहोश माँ, रोती सुबकती बहने, साथ में इकट्ठा एक शांत, पर बिखरी भीड़ ।
लेकिन वीणा को एक काम अभी और करना था ।उसने साथ लाये फल और कुछ अधूरा सा माँ का बनाया खाना लिया और जैसे तैसे बेहोश माँ को खिलाया जैसा कि महाराज ने कहा था । पूरे घर में उस दिन एक शांत चहल पहल थी ।
दिन बदला सुबह जल्दी ताऊजी चौक से रसोई तक आये तब ताई भी रसोई में थी ।
ताऊजी बाहर से ही बोले
“देख नैना, जो हो गया वो हो गया । अभी तक का मैंने सम्भाल भी लिया पर अभी सारे काम बाक़ी है । कल तिया है, फिर बारवाँ भी है । तो सब व्यवस्था करनी होगी । पैसा लगेगा तू देख लेना क्या करना है? कल कोई ऊँच- नीच हुई तो कोई ज़िम्मेदार नहीं । “
माँ अंदर से ही बोली जिसको ताई ने ऊँची आवाज़ देकर ताऊजी तक पहुँचाया
“कह रही है इसके पास कुछ नहीं है, अभी तो खाना पीना भी कैसे होगा, इसका ही कुछ पता नहीं।तो ये सब खर्चा छः बच्चे और ये सातवाँ, कैसे होगा सब ? कह रही है कुछ नहीं है इसके पास तो । “
ताऊजी बोले “आराम से सोच ले, सब बाँट लिया था तब हमने, तो भोला ने क्या किया? क्या नहीं ? मैंने कभी दखल नहीं दी । मुझे नहीं पता अब तू आराम से सोच लेना। मेरे से आशा मत करना। “
और ताई को इशारा किया और दोनों चले गये ।
वीणा माँ के पास गई और बोली
“माँ ये सब क्या बोल रहे है ताऊजी, क्या करना है ?”
माँ बोली “ कुछ नहीं बेटा, तू ये चार आने ले जा और महाराज जी को बोलना ताऊजी ने सहयोग करने को मना कर दिया है । पैसे माँग रहे है अब आप बताओ क्या करना है ? और सुन वापस आने को पैसे नहीं बचें, तो पैदल ही आ जाना ।”
वीणा छुटकी को साथ लेकर और साथ ही महाराज के दिये पैसे में से बचे पैसे लेकर फिर निकल गई ।
इस बार महाराज ना मिले। वो यहाँ वहाँ और फिर कुटिया में ढूँढती रही। भूख, धूप और पसीने से हाल बुरा था । साथ ही छुटकी जो रोये जा रही थी, दो घंटे इंतज़ार करने के बाद और इतना ढूँढने के बाद, भूखी और थकी वीणा पास में लगे इमली के पेड़ से इमली तोड़ कर खाने लगी और साथ छुटकी को भी खिलाने लगी । भूख कम करने का और कोई रास्ता ना दिखता था और बाप के जाने पर जैसी भूख चली जाती है, उसकी ना गई थी । उसको देखकर लगता ही नहीं था कि वो छ बहनों में बड़ी है, ना कोई आँसू ना कोई शिकन । बचपना वैसा का वैसा ।
इस बार फिर से कुटिया में घुसी और देखा महाराज समाधि में है। उसे समझ नहीं आया, ये क्या हुआ ?
पहले आयी तब तो नहीं थे । अभी अचानक फिर, उसने ये समझना छोड़ अपने आने का प्रयोजन महाराज को ध्यान लीन अवस्था में ही सुना दिया ।
“प्रणाम महाराज! ताऊजी आये थे। माँ से पैसे माँग रहे थे ।बोले पैसे दो नहीं तो कुछ नहीं होगा ।
माँ का रो रो के बुरा हाल है, खाने की भी समस्या है । माँ उठती है और फिर बेहोश हो जाती है, बहने रोये जा रही है, पूरी रात हो गई । आपको बस यही बताने भेजा है ।”
महाराज ने आँखे खोली फिर बोले “भोजन किया?”
वीणा ने ना में सर हिलाया महाराज ने कुछ फल दिये बोले “ तू और छुटकी ये खा लो और कुछ और रखे है वो ले जाना ।”
आर्थिक स्तिथि तो महाराज की भी अच्छी नहीं थी । एक घास फूस की टपरी , एक हवन कुंड, और एक सेवा करने वाला भोला, जो अब चला गया था ।
महाराज ने पास बनी चूल्हे की राख में हाथ दिया फिर कुछ टटोला और झाड़ते हुए और एक सिक्का देते हुए बोले
“ये पाँच रुपये लेती जा और सुन बस आटा, नमक, मिर्ची लेना। नमक, मिर्ची को पानी में मिलाना और रोटी से खा लेना और जब तक इससे काम चले चलाना, फिर वापस आना और तेरे ताऊजी भैरु सिंह को बोलना महाराज ने तुरंत बुलाया है ।नहीं बोल सके, तो फिर यही सिक्का दे देना उनको । ठीक है, और तेरे पास वापस जाने के पैसे है ? “
“हाँ, महाराज जी है, वही जो आपने दिये थे । उसी में से मैंने बचा लिये थे। माँ के भरोसे तो मुझे पैदल ही जाना पड़ता ।”
महाराज बोले “सुन वीणा, तू ना रोयी, पता है ना तेरा बाप गया ।”
“हाँ महाराज जी, पर ऐसा कुछ लगा नहीं रोने जैसा, अब रोना आ ही नहीं रहा तो बिना बात क्या रोऊँ, बस महाराज जी आप बोले थे, सब ठीक है ।पर मुझे ये समझ नहीं आता ठीक मतलब क्या होता है ? “
“ समझ जाएगी, ठीक का मतलब भी , वैसे सब ठीक ही है और ठीक ही होगा, अभी तू जा “
“हाँ महाराज जी, और तो किया भी क्या जा सकता है । माँ की दशा ,बहनों की मनोदशा, ताऊजी का रूप, आपका स्वरूप ,बहुत कुछ चले जा रहा है दिलो दिमाग़ में। सोचने समझने की शक्ति जा सी चुकी है ।अब जो भी करना है आपको ही करना है ।”
“चल जा अब, बहुत बाते करती है और बहुत अधिकार दिखाती है, अभी से ही …“ महाराज बोले
“क्या महाराज ?” वीणा ने जानना चाहा अधिकार का मतलब
और बिना जवाब दिये महाराज पलट गये ।
वीणा आयी और तुरंत ही पास की हवेली में ताऊजी के पास चली गई ।
बड़ी हवेली, गाड़ी घोड़े , नौकर चाकर, और बरामदे में लोगो से घिरे, खाट पर बैठे ताऊजी हुक्का गुड़गुड़ा रहे थे, सबके बीच में गर्दन नीची करके धीमे-धीमे चलती हुई वीणा पहुँची ।
ताऊजी ने पास आती वीणा को देख बोलना बंद कर दिया । तो बाक़ी सब भी वीणा को मुड़कर देखने लगे ताऊजी के अलावा, लगभग सबकी नजरो में दया दिखती थी ।
“ हाँ बोलो बेटा !“ तेज आवाज़ में ताऊजी बोले आवाज का भाव ऐसा था, कि बेटा शब्द कही गौण हो गया ।
वीणा की गर्दन ऊँची ही ना हो, ना ही आवाज़ निकले । वीणा के हाथ में कुछ था, जो उसने बहुत तेज दबाया था। उसने मुट्ठी और कसकर बंद कर ली।
पसीना पसीना हो गई । पर शब्द थे कि निकलते ही न थे ।
“क्या हुआ? बोलती क्यों नहीं” ताऊजी गरजे
वीणा का डर और बढ़ रहा था । वो अब काँपने लगी ।
“क्या है ये, हाथ में? क्या दबाया है? बोल क्यों आयी है ?” ताऊजी का आवेश चरम पर था ।
वीणा ने मुट्ठी आगे की और खोल दी। उसके हाथ में एक पाँच का सिक्का रखा था ।
“क्या है ये ?” ताऊजी ने थोड़ा स्वर नीचे करके आश्चर्य से पूछा ।
वीणा बोली “ महाराज जी ने मिलने बुलाया है ।आपको जल्दी से जल्दी और ये दिये है । घर में खाने को आटा, नमक, मिर्ची लाने के लिए ।”
और फिर मुट्ठी को बंद करके घुटनों के बल बैठ गई और ताऊजी को देखती रही ।ताऊजी भी उसको देखते रहे ।वीणा की पलके झपकती नहीं थी ।ना ताऊजी की ।सब दोनों को देख रहे थे ।
कुछ देर बाद ताऊजी बोले
“घूर क्या रही है ? नन्ही सी छोरी मुझे घूरती है ।” लेकिन वीणा एक टक देखे जा रही थी जैसे उसके कानों में आवाज़ ना जाती हो । आँखों से कुछ सवाल कर रही हो और ताऊजी से जवाब चाहती हो और मुट्ठियाँ, कसती जा रही थी ।
ताऊजी ने ग़ुस्से से कहा “क्या देख रही है? इधर आ मेरे पास सुन नहीं रही क्या? इधर आ “
अब वीणा उठी ताऊजी की ओर बढ़ गई और उनको देखते हुए ही उनके पास पहुँची
और जैसे ही उनके पास पहुँची । उसकी गरदन अपने आप नीचे हो गई और नीचे देखते हुए बोली बोली
“ताऊजी, कैसे सब ठीक होगा ?”
ताऊजी ने वीणा को देखा , उसका हाथ पकड़कर उसे अपने पास खाट पर बिठाया और वीणा का हाथ खोला।वो सिक्का हाथ में लिया । वीणा के हाथ में सिक्के से लाल रंग का गोल निशान बन गये थे ।
अचानक वीणा ने कसकर ताऊजी को गले लगा लिया और दहाड़मार कर रोने लगी ।उसे रोता देख ताऊजी का हाथ अपने आप उसके सर पर चला गया और ताऊजी के आँसू बह निकले । दोनों बाप बेटी ऐसे रोये जैसे किसी को बाप मिल गया हो और किसी को ज़िम्मेदारी ।
बहुत देर रोने के बाद ताऊजी ने अपने हाथ में उस सिक्के को देखा । सिक्के को कसकर दबाने से इस बार उनके हाथ में वो गोल लाल निशान बन गया था।
ऐसा लगता था जैसे ज़िम्मेदारियाँ अब हाथ बदल चुकी थी ।
ताऊजी ने वीणा के हाथ चूमे और बोले
“ जा बेटा , तेरी माँ को बोल देना, भोला को तो मैं वापस नहीं ला सकता। लेकिन जब तक हूँ तब तक, तुम सबको उसकी कमी नहीं खलने दूँगा । जा बोल देना तेरी माँ को, तेरा बाप गया है, उसका साया नहीं । और सुन बेटा, सब ठीक होगा । “
वीणा धीरे से उठी और चलने लगी ताऊजी सिक्के को और अपने हाथ को देख रहे थे ।
और बोले “ सब ठीक करेंगे ।”
बस यही सोचते सोचते बूढ़ी हो चुकी वीणा ने कॉपी के पन्ने पर राम नाम की जगह लिख दिया
“सब ठीक है”
और अब उसे देखकर, अपनी गलती पर मुस्कुरा रही थी ।
Copyright @ रोहित प्रधान
“अरे आंटी! आज सोयी नहीं आप ?, क्या हुआ सब ठीक तो है ?” जाली वाले गेट के बाहर से मिथलेश बोला ।
“हाँ, बेटा ! बिगड़ने को ज़्यादा कुछ है नहीं अब, जो अब कुछ बिगड़ा, तो कुछ और बचेगा नहीं ।तो मानो सब ठीक ही होगा ।” वीणा आँटी ने अपना पेन वाला हाथ उठाते हुए मुस्कुराकर बोला ।
मिथलेश भी मुस्कुराकर बिना कुछ बोले सीढ़ियाँ चढ़ गया ।जैसे आँटी की आवाज़ सुनना ही उसका ध्येय था ।
“ठीक तो है सब ? सब ठीक होगा।” बड़बड़ाते हुए वीणा भूतकाल में इन शब्दों में खो गई ।
उस दिन भी यही पूछा था माँ ने
“ठीक तो है सब ?”
जब वीणा अपनी छोटी बहन को गोद में लेकर खिला रही थी और पापा अचानक चौक में गिर गये थे । फिर वीणा चिल्लाकर बहन को गोद में लेकर ही दौड़ पड़ी थी ।
“माँ …माँ …! .देखो क्या हुआ है पापा को ?”
“क्या हुआ वीणा ? क्यों चिल्ला रही है ? ठीक तो है सब ?” माँ बोली
“पता नहीं माँ ! बाबूजी गिर गये है, चौक में कुछ बोल नहीं रहे ।”
माँ खाना बनाना छोड़, अपने आटे से सने हुए हाथों के साथ, अपना सात महीने का गर्भ लिए दौड़ी ।
“क्या हुआ? वीणा के बाबूजी उठो, वीणा भाग के जा, किसी को बाहर से बुला ला, …जल्दी जा ”
छ: बहनों में सबसे बड़ी चौदह साल की वीणा, सबसे छोटी दो साल की छुटकी को गोद में लेकर हवेली के बाहर दौड़ी ।
“ नानू काका , रामू भैया , जल्दी आओ बाबूजी को कुछ हो गया है ।” वो चीख रही थी ।
धीरे धीरे लोग इकट्ठे हो गए वीणा की माँ पल्लू लेकर अंदर चली गई। सब लोग कोशिश कर रहे थे, कि वीणा के बाबूजी कुछ बोले। पर वो कुछ ना बोले सब जतन जारी थे । शरीर ठंडा पड़ चुका था ।
एक बोला “अरे! भोलाराम जी को जल्दी उठाओ और इनको लेकर चलो अस्पताल ।”
दूसरा बोला “ अरे ! भोलाराम जी नहीं रहे अब वो, सब परिवार को इकट्ठा करो ।“
तीसरा बोला “ पर कोई पता तो करो पहले, क्या हुआ है ? ऐसे कैसे कुछ भी मान लो….“
सब अपने-अपने क़यास लगा रहे थे ।
समझ नहीं आया बच्चियों को और उनकी माँ को की क्या चल रहा है ?
तभी अंदर से वीणा की माँ ने इशारे से वीणा को रसोई घर में बुलाया। अपने पल्लू की गाँठ को खोलती हुई , कुछ पैसे निकाल कर बोली
“ले वीणा! ये चार आने ले जा और जल्दी से गाड़ी में बैठकर महाराज जी के पास जा और सब बता देना जो हुआ है।”
वीणा को नहीं पता क्या बताना है, पर वो पैसे लेकर महाराज का रुख़ कर बिना सोचे समझे निकल गई ।
पाँच किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद, जब वो महाराज के पास पहुँची। तब महाराज समधि में थे ।
वीणा ने सोचा - बोले या नहीं पर उसे कहाँ नियम पता थे ? तो उसने हालात देखकर बोलना ही उचित समझा ।
“महाराज जी, प्रणाम मैं वीणा, भोलाराम जी की बड़ी बेटी, माँ ने भेजा है , बाबूजी चौक में गिर गये है, लोग इकट्ठा है , बहुत कुछ कह रहे है, शायद बाबूजी नहीं रहे ।”
इतना सुनते ही महाराज ने आँख खोली और बस इतना बोले
“क्या भोलाराम !,
फिर धीरे से कुछ सोचकर बोले “ इतना जल्दी? हे भगवान ! “ फिर उठे कुछ फल अंदर कुटिया से लाये और वीणा को देते हुए बोले
“बेटा ! ये फल तू खा लेना, कुछ ले जाना और ये एक रुपया लेती जा, कुछ घर के लिए भी ले जाना । माँ को बोलना सही समय होगा तब आऊँगा ।माँ को कुछ खिला ज़रूर देना , उसका भूखा रहना ठीक नहीं ” और गोद में बैठी छुटकीं के सर पर हाथ फेरा और वीणा के गाल पर और फिर बोले
“ सब ठीक है ।”
वीणा को समझ नहीं आया क्या ठीक है ?
सब इतने कम शब्दों में क्यों बात कर रहे है ।
सुबह से भूखी वीणा वापस आते हुए दस पैसे का एक क्रीम रोल ख़रीद खाने लगी और छुटकी को भी उसी में से खिला दिया । उसे ये समझ नहीं थी कि मेरा बाप जा चुका है ।उसके ना कोई आँसू आया, ना भूख ही मरी। घर पहुँची तो सब बदल चुका था ।
एक छोटी मटकी, पास जलता कंडा, सर मुंडवाते कुछ लोग, निर्देश देते ताऊजी, बेहोश माँ, रोती सुबकती बहने, साथ में इकट्ठा एक शांत, पर बिखरी भीड़ ।
लेकिन वीणा को एक काम अभी और करना था ।उसने साथ लाये फल और कुछ अधूरा सा माँ का बनाया खाना लिया और जैसे तैसे बेहोश माँ को खिलाया जैसा कि महाराज ने कहा था । पूरे घर में उस दिन एक शांत चहल पहल थी ।
दिन बदला सुबह जल्दी ताऊजी चौक से रसोई तक आये तब ताई भी रसोई में थी ।
ताऊजी बाहर से ही बोले
“देख नैना, जो हो गया वो हो गया । अभी तक का मैंने सम्भाल भी लिया पर अभी सारे काम बाक़ी है । कल तिया है, फिर बारवाँ भी है । तो सब व्यवस्था करनी होगी । पैसा लगेगा तू देख लेना क्या करना है? कल कोई ऊँच- नीच हुई तो कोई ज़िम्मेदार नहीं । “
माँ अंदर से ही बोली जिसको ताई ने ऊँची आवाज़ देकर ताऊजी तक पहुँचाया
“कह रही है इसके पास कुछ नहीं है, अभी तो खाना पीना भी कैसे होगा, इसका ही कुछ पता नहीं।तो ये सब खर्चा छः बच्चे और ये सातवाँ, कैसे होगा सब ? कह रही है कुछ नहीं है इसके पास तो । “
ताऊजी बोले “आराम से सोच ले, सब बाँट लिया था तब हमने, तो भोला ने क्या किया? क्या नहीं ? मैंने कभी दखल नहीं दी । मुझे नहीं पता अब तू आराम से सोच लेना। मेरे से आशा मत करना। “
और ताई को इशारा किया और दोनों चले गये ।
वीणा माँ के पास गई और बोली
“माँ ये सब क्या बोल रहे है ताऊजी, क्या करना है ?”
माँ बोली “ कुछ नहीं बेटा, तू ये चार आने ले जा और महाराज जी को बोलना ताऊजी ने सहयोग करने को मना कर दिया है । पैसे माँग रहे है अब आप बताओ क्या करना है ? और सुन वापस आने को पैसे नहीं बचें, तो पैदल ही आ जाना ।”
वीणा छुटकी को साथ लेकर और साथ ही महाराज के दिये पैसे में से बचे पैसे लेकर फिर निकल गई ।
इस बार महाराज ना मिले। वो यहाँ वहाँ और फिर कुटिया में ढूँढती रही। भूख, धूप और पसीने से हाल बुरा था । साथ ही छुटकी जो रोये जा रही थी, दो घंटे इंतज़ार करने के बाद और इतना ढूँढने के बाद, भूखी और थकी वीणा पास में लगे इमली के पेड़ से इमली तोड़ कर खाने लगी और साथ छुटकी को भी खिलाने लगी । भूख कम करने का और कोई रास्ता ना दिखता था और बाप के जाने पर जैसी भूख चली जाती है, उसकी ना गई थी । उसको देखकर लगता ही नहीं था कि वो छ बहनों में बड़ी है, ना कोई आँसू ना कोई शिकन । बचपना वैसा का वैसा ।
इस बार फिर से कुटिया में घुसी और देखा महाराज समाधि में है। उसे समझ नहीं आया, ये क्या हुआ ?
पहले आयी तब तो नहीं थे । अभी अचानक फिर, उसने ये समझना छोड़ अपने आने का प्रयोजन महाराज को ध्यान लीन अवस्था में ही सुना दिया ।
“प्रणाम महाराज! ताऊजी आये थे। माँ से पैसे माँग रहे थे ।बोले पैसे दो नहीं तो कुछ नहीं होगा ।
माँ का रो रो के बुरा हाल है, खाने की भी समस्या है । माँ उठती है और फिर बेहोश हो जाती है, बहने रोये जा रही है, पूरी रात हो गई । आपको बस यही बताने भेजा है ।”
महाराज ने आँखे खोली फिर बोले “भोजन किया?”
वीणा ने ना में सर हिलाया महाराज ने कुछ फल दिये बोले “ तू और छुटकी ये खा लो और कुछ और रखे है वो ले जाना ।”
आर्थिक स्तिथि तो महाराज की भी अच्छी नहीं थी । एक घास फूस की टपरी , एक हवन कुंड, और एक सेवा करने वाला भोला, जो अब चला गया था ।
महाराज ने पास बनी चूल्हे की राख में हाथ दिया फिर कुछ टटोला और झाड़ते हुए और एक सिक्का देते हुए बोले
“ये पाँच रुपये लेती जा और सुन बस आटा, नमक, मिर्ची लेना। नमक, मिर्ची को पानी में मिलाना और रोटी से खा लेना और जब तक इससे काम चले चलाना, फिर वापस आना और तेरे ताऊजी भैरु सिंह को बोलना महाराज ने तुरंत बुलाया है ।नहीं बोल सके, तो फिर यही सिक्का दे देना उनको । ठीक है, और तेरे पास वापस जाने के पैसे है ? “
“हाँ, महाराज जी है, वही जो आपने दिये थे । उसी में से मैंने बचा लिये थे। माँ के भरोसे तो मुझे पैदल ही जाना पड़ता ।”
महाराज बोले “सुन वीणा, तू ना रोयी, पता है ना तेरा बाप गया ।”
“हाँ महाराज जी, पर ऐसा कुछ लगा नहीं रोने जैसा, अब रोना आ ही नहीं रहा तो बिना बात क्या रोऊँ, बस महाराज जी आप बोले थे, सब ठीक है ।पर मुझे ये समझ नहीं आता ठीक मतलब क्या होता है ? “
“ समझ जाएगी, ठीक का मतलब भी , वैसे सब ठीक ही है और ठीक ही होगा, अभी तू जा “
“हाँ महाराज जी, और तो किया भी क्या जा सकता है । माँ की दशा ,बहनों की मनोदशा, ताऊजी का रूप, आपका स्वरूप ,बहुत कुछ चले जा रहा है दिलो दिमाग़ में। सोचने समझने की शक्ति जा सी चुकी है ।अब जो भी करना है आपको ही करना है ।”
“चल जा अब, बहुत बाते करती है और बहुत अधिकार दिखाती है, अभी से ही …“ महाराज बोले
“क्या महाराज ?” वीणा ने जानना चाहा अधिकार का मतलब
और बिना जवाब दिये महाराज पलट गये ।
वीणा आयी और तुरंत ही पास की हवेली में ताऊजी के पास चली गई ।
बड़ी हवेली, गाड़ी घोड़े , नौकर चाकर, और बरामदे में लोगो से घिरे, खाट पर बैठे ताऊजी हुक्का गुड़गुड़ा रहे थे, सबके बीच में गर्दन नीची करके धीमे-धीमे चलती हुई वीणा पहुँची ।
ताऊजी ने पास आती वीणा को देख बोलना बंद कर दिया । तो बाक़ी सब भी वीणा को मुड़कर देखने लगे ताऊजी के अलावा, लगभग सबकी नजरो में दया दिखती थी ।
“ हाँ बोलो बेटा !“ तेज आवाज़ में ताऊजी बोले आवाज का भाव ऐसा था, कि बेटा शब्द कही गौण हो गया ।
वीणा की गर्दन ऊँची ही ना हो, ना ही आवाज़ निकले । वीणा के हाथ में कुछ था, जो उसने बहुत तेज दबाया था। उसने मुट्ठी और कसकर बंद कर ली।
पसीना पसीना हो गई । पर शब्द थे कि निकलते ही न थे ।
“क्या हुआ? बोलती क्यों नहीं” ताऊजी गरजे
वीणा का डर और बढ़ रहा था । वो अब काँपने लगी ।
“क्या है ये, हाथ में? क्या दबाया है? बोल क्यों आयी है ?” ताऊजी का आवेश चरम पर था ।
वीणा ने मुट्ठी आगे की और खोल दी। उसके हाथ में एक पाँच का सिक्का रखा था ।
“क्या है ये ?” ताऊजी ने थोड़ा स्वर नीचे करके आश्चर्य से पूछा ।
वीणा बोली “ महाराज जी ने मिलने बुलाया है ।आपको जल्दी से जल्दी और ये दिये है । घर में खाने को आटा, नमक, मिर्ची लाने के लिए ।”
और फिर मुट्ठी को बंद करके घुटनों के बल बैठ गई और ताऊजी को देखती रही ।ताऊजी भी उसको देखते रहे ।वीणा की पलके झपकती नहीं थी ।ना ताऊजी की ।सब दोनों को देख रहे थे ।
कुछ देर बाद ताऊजी बोले
“घूर क्या रही है ? नन्ही सी छोरी मुझे घूरती है ।” लेकिन वीणा एक टक देखे जा रही थी जैसे उसके कानों में आवाज़ ना जाती हो । आँखों से कुछ सवाल कर रही हो और ताऊजी से जवाब चाहती हो और मुट्ठियाँ, कसती जा रही थी ।
ताऊजी ने ग़ुस्से से कहा “क्या देख रही है? इधर आ मेरे पास सुन नहीं रही क्या? इधर आ “
अब वीणा उठी ताऊजी की ओर बढ़ गई और उनको देखते हुए ही उनके पास पहुँची
और जैसे ही उनके पास पहुँची । उसकी गरदन अपने आप नीचे हो गई और नीचे देखते हुए बोली बोली
“ताऊजी, कैसे सब ठीक होगा ?”
ताऊजी ने वीणा को देखा , उसका हाथ पकड़कर उसे अपने पास खाट पर बिठाया और वीणा का हाथ खोला।वो सिक्का हाथ में लिया । वीणा के हाथ में सिक्के से लाल रंग का गोल निशान बन गये थे ।
अचानक वीणा ने कसकर ताऊजी को गले लगा लिया और दहाड़मार कर रोने लगी ।उसे रोता देख ताऊजी का हाथ अपने आप उसके सर पर चला गया और ताऊजी के आँसू बह निकले । दोनों बाप बेटी ऐसे रोये जैसे किसी को बाप मिल गया हो और किसी को ज़िम्मेदारी ।
बहुत देर रोने के बाद ताऊजी ने अपने हाथ में उस सिक्के को देखा । सिक्के को कसकर दबाने से इस बार उनके हाथ में वो गोल लाल निशान बन गया था।
ऐसा लगता था जैसे ज़िम्मेदारियाँ अब हाथ बदल चुकी थी ।
ताऊजी ने वीणा के हाथ चूमे और बोले
“ जा बेटा , तेरी माँ को बोल देना, भोला को तो मैं वापस नहीं ला सकता। लेकिन जब तक हूँ तब तक, तुम सबको उसकी कमी नहीं खलने दूँगा । जा बोल देना तेरी माँ को, तेरा बाप गया है, उसका साया नहीं । और सुन बेटा, सब ठीक होगा । “
वीणा धीरे से उठी और चलने लगी ताऊजी सिक्के को और अपने हाथ को देख रहे थे ।
और बोले “ सब ठीक करेंगे ।”
बस यही सोचते सोचते बूढ़ी हो चुकी वीणा ने कॉपी के पन्ने पर राम नाम की जगह लिख दिया
“सब ठीक है”
और अब उसे देखकर, अपनी गलती पर मुस्कुरा रही थी ।
Copyright @ रोहित प्रधान
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Deepa Sharma on December 23,2024आपकी रचनाओं में विचारों का संग्रहण और उन्हें बयान करने का तरीका अत्यंत प्रेरणादायक है। आपकी कहानियाँ न केवल मनोरंजनपूर्ण हैं, बल्कि उनमें सामाजिक संदेश और मानवीय भावनाओं को साझा करने का भी अद्भुत अंग दिखाती हैं।
Pankaj on December 23,2024Story elements are still alive ?..may be yes
Om Pandya on December 23,2024nice👍
Unknown on December 23,2024Impressive!
ललित on December 23,2024कितना सादगी भरा लेखन है, ज़बरदस्त है और भावुक भी💐
Arvind on December 23,2024Simple yet impactful and thoughtful writing. Keep it up.
on December 23,2024Nice
Ujjwal on December 23,2024Deep and meaningful sab theek h bigadne ko kuch ab bacha nahi
Ummed Singh BIKA on December 23,2024धन्यवाद आपका
Mukesh Joshi on December 23,2024Marvelous, dose of feelings. Hats off to you man
Tarun kumar sharma on December 23,2024बहुत मार्मिक हृदयस्पर्शी कहानी सधी हुई लेखनी से बेहतरीन लेखन
on December 23,2024Nice
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